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Wednesday, August 14, 2013

स्वंत्रता के जंग की प्रथम प्रेरणा - " गौ माता "


मंगल पांडेय के विरोध का कारण यहाँ गौ ही थी । गाय के मॉस से बनी कारतूस का उपयोग न करना उनके के लिए और हर भारतवासी के लिए माननीय नहीं था । और आज हम भारत माँ के संताने स्वतंत्र होने के बाद  अपनी ही गौ माँ का मॉस खा रहें हैं ।

गांधी जी भी कहेते थे कि या तो स्वंत्रता दे दो या तो ये गौ हत्या (कतलखाने) बंद करवा दो और इन दोनों में उन्होंने गौ हत्या बंद करवाने को प्राथमिकता क्यूंकि वे जानते थे की अगर गौ बचेगी तो देश बचेगा ।केवल नाम की स्वत्रंता ही नहीं बल्कि वही गौरवशाली भारत के लिए गौ रक्षा बहुत जरूरी है ।

स्वतंत्रता का अर्थ है अपना तंत्र (व्यवस्था)  अपने स्वाभिमान और समझ से बानायी हुई , पर ऐसा है ही नहीं । संविधान से लेके नीतियों तक सब दूसरों से लिया हुआ है और स्वाभिमान की तो बात ही छोड़ दो ।

अंग्रेज़ समझ गए थे कि भारत की नीव गौ और गुरुकुल हैं । इसी से हमारा ज्ञान ,धन और धर्म की वृद्धि होती है तो उन्होंने इन दोनों का ही सफाया कर डाला जिसके लिए उन्होंने गुरुकुलों को गैरकानून करार कर डाला और गौ हत्या के लिए कतलखाने खुलवा दिए । आज भी ये क़ानून ऐसे के ऐसे ही हैं ।


अच्छा तो अब लोग कहेंगे की गाय बचाने से पूर्ण स्वतंत्रता कैसे मिलेगी । तो ये जानना जरुरी है की आत्मनिर्भरता केवल गौ से ही संभव है । देश का हर घर बीमारियों का पिटारा बन चूका है जिसके लिए सब एलॉपथी के दावा खाते रहतें हैं , रहन- सहन में भी विदेशी पन आगया है जिसकी वजह से और बीमारियाँ हो रहीं हैं । इस सब में देश का हज़ारों करोड़ रुपे हर साल  बर्बाद  जाता है । केवल गौ माँ का दूध पीने से और गौ गव्यों की चिकित्सा से हर बिमारी (जैसे कैंसर जसी ला इलाज़ ) का इलाज़ संभव है । ये कहलायेगा स्वदेशी चिकित्सा और स्वदेशी ज्ञान का प्रयोग । ये है असली स्वतंत्रता  ।
देश में किसानों ने  यूरिया  DAP और कीटनाशक डालकर ज़मीन और अनाज को ज़ेहेरिला कर दिया है । ये  डालने  से उनको कुछ मुनाफा भी नहीं मिलता और तो और उनका उत्पादन भी और कम हो गया है जिसकी वजह से वे और रसायनों   का प्रयोग कर रहें हैं  । गौ के गोबर और गो मूत्र से बनी खाद सबसे उत्तम है । ये उतपादन और ज़मीन दोनों को लिए अच्छी है ।
लोग और सरकार आजकल खाली मैदान या जंगल छोड़ते ही नहीं  ।पहेले लोग गायों को चराने के लिए गोचर भूमि संभाल कर रखते थे और गायों के लिए  पोखर  बनाया करते थे , इससे प्रकृति में संतुलन बना रहेता था पर आज तो देश में प्रकृति माता को भी नहीं बक्षा । चंदृगुप्ता मौर्य के समय 22 करोड़ जन संख्या के लिए 20 करोड़ गायें थी और आज केवल  4-5 करोड़ ही रहे गयीं हैं |

यह बात भी ध्यान दें की गाय केवल स्वदेशी हो न कि  Jersey , Holstein Fresian या  hybrid क्यूंकि इनका दूध या गोबर देशी गाय के दूध , गोबर , गौमूत्र की  तरह अमृत नहीं बल्कि ज़हर है । केवल कंधे वाली गौ ही हमारी गौ माता है जैसा की चित्र में दिखाया हैं ।

गौ को अपने जीवन में लाने से ही हम विदेशी ज्ञान ( जो की केवल दुःख देता है ) से बच सकते हैं और स्वतंत्र भारत को विश्व में महाज्ञानी और महाशक्ति के रूप में स्थापित कर सकते हैं ।

॥ जय  भारत ||

Friday, August 9, 2013

आया मौसम सावन का !!


॥ सावन के मौसम में पुष्पों पर पानी की बूंदों  की सुन्दरता ॥