|| श्री गोभ्यः नमः ||
गाय पृथ्वी की सर्वश्रेष्ठ प्राणी है जो किसी भी खाद्य वस्तु को अमृत में परिवर्तित करती है ।
गोबर , दूध और गौमूत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वह वायु और उर्जा शुद्ध करती है ।बैलों की सुगंद मात्र से कई रोगों का क्षय होता है । अतः इसका स्थान मनुष्यों से भी उपर है ।
प्राचीन भारत की धर्म और अर्थ व्यवस्था गौ पर ही निर्भर थी । घरों में फर्श लेपने और खाना पकाने से लेकर औषधियों और कृषि भूमि से लेकर वाहन के रूप में गौ की भूमिका सर्वोपरि रही है । गौ पालन एवं सेवा व्यर्थ के भोगो से बचाती है और संतुष्ठता प्रदान करती है जिससे गौ पालक चरित्रवान और सेवानिष्ट होता है अतः वह समाज के प्रति जागरूक और सही मार्ग को प्रकाशित करने वाला होता है अतः गौ धर्म अर्थ काम मोक्षदायिनी है ।
आधुनिक स्थिति में मानव गौ को ही भूल चुका है । प्रत्यक्ष देवता को न पूज के मूर्तियों और ढोंग में फंसा है । यह जानना आवश्यक है प्रकृति में उपलब्ध वस्तुएं ही वास्तविक देवता (वृक्ष , जलाशय , मेघ , पर्वत , प्राणी , पंचभूत , उर्जा एवं गौ ) है। इन कृतियों का शोषण और मलीन करना प्राकर्तिक आपदाओं को निमंत्रण देना है ।
भारत का प्रत्येक नागरिक अगर गौ प्रेमी हो और वह अपना कुछ समय और आय का भाग गौ वर्धन में नियोजित करे तो इस देश का और उस गौ प्रेमी का उठान सुनिश्चित है ।
"यह सारी पृथ्वी गौधरा(गौ के रहेने और चरने का स्थान) है "
"आप गाय को कोई नहीं पालते अपितु गाय आपको पालती है "
" प्रकृति में सभी समस्यों का निवारण करने में केवल गौ ही समर्थ है "
|| वन्दे धेनुमातरम् ||
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